नक्षत्र परिचय
जो अपने क्षेत्र से हटते नहीं, उसे नक्षत्र कहते हैं। जिस प्रकार पृथ्वी की दूरी को किलोमीटर या मील में नापा जाता है, ठीक उसी प्रकार सौरमंडल के ग्रहों की दूरियों को नक्षत्र के जरिए नापा जाता है। पृथ्वी सहित सौरमंडल के अन्य ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं। इस परिक्रमा का मार्ग अंडाकार पट्टे के समान है, जिसे कांति प्रदेश या भ्रमण-चक्र कहते हैं। यह असंख्य ताराओं का समूह है, जिनका स्वयं का प्रकाश होता है। ये एक विशेष आकृति लिए टिमटिमाते हैं। ये नक्षत्र कहलाते हैं।
नक्षत्र के नाम
इनकी विशेष आकृतियों के आधार पर ही इनके नाम रखे गए हैं : अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृग, आद्री, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, उत्तरा फाल्गुनी, पूर्वा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपदा, उत्तरा भाद्रपदा, रेवती। अभिजीत को 28वाँ नक्षत्र माना गया है। उत्तराषाढ़ा की आखिरी 15 घटियाँ और श्रवण के प्रारंभ की चार घटियाँ इस प्रकार यह 19 घटियों वाला अभिजीत नक्षत्र कहलाता है। यह समस्त कार्यों के लिए शुभ माना गया है। भ्रमण-चक्र 360 अंश का होता है, जिसे 27 भागों में बाँटा गया है। जिसका एक भाग 13 अंश 33 कला का होता है जो एक नक्षत्र कहलाता है। प्रत्येक नक्षत्र का अपना एक निश्चित क्षेत्र होता है, जिसे समान चार चरणों में 3 अंश 33 कला पर विभक्त करने पर 3 अंश 33 कला को नक्षत्र का एक चरण कहते हैं। अर्थात 3 अंश 33 कला के चार भागों का एक संपूर्ण नक्षत्र होता है।
इनकी विशेष आकृतियों के आधार पर ही इनके नाम रखे गए हैं : अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृग, आद्री, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, उत्तरा फाल्गुनी, पूर्वा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपदा, उत्तरा भाद्रपदा, रेवती। अभिजीत को 28वाँ नक्षत्र माना गया है। उत्तराषाढ़ा की आखिरी 15 घटियाँ और श्रवण के प्रारंभ की चार घटियाँ इस प्रकार यह 19 घटियों वाला अभिजीत नक्षत्र कहलाता है। यह समस्त कार्यों के लिए शुभ माना गया है। भ्रमण-चक्र 360 अंश का होता है, जिसे 27 भागों में बाँटा गया है। जिसका एक भाग 13 अंश 33 कला का होता है जो एक नक्षत्र कहलाता है। प्रत्येक नक्षत्र का अपना एक निश्चित क्षेत्र होता है, जिसे समान चार चरणों में 3 अंश 33 कला पर विभक्त करने पर 3 अंश 33 कला को नक्षत्र का एक चरण कहते हैं। अर्थात 3 अंश 33 कला के चार भागों का एक संपूर्ण नक्षत्र होता है।
स्थापत्य वेद में नक्षत्रों का महत्व
जिस समय जातक का जन्म होता है, उस समय के नक्षत्र का प्रभाव जातक के जीवनपर्यंत रहता है। इस नक्षत्र के स्वभाव, गुण, आकृति के अनुसार जातक का चेहरा, स्वभाव एवं व्यवसाय आदि का निर्धारण होता है। भवन-नियोजन एवं निर्माण भी इसी तरह किया जाना चाहिए कि जातक के नक्षत्र के अनुसार शुभ एवं अनुकूल हो। इसलिए भवन का निर्माण करते समय भूमि का चयन, भूमि-पूजन, मुख्य द्वार का निर्धारण, रंगों का नियोजन, गृह प्रवेश आदि कार्य नक्षत्र के अनुसार संपन्न किए जाते हैं।
जिस समय जातक का जन्म होता है, उस समय के नक्षत्र का प्रभाव जातक के जीवनपर्यंत रहता है। इस नक्षत्र के स्वभाव, गुण, आकृति के अनुसार जातक का चेहरा, स्वभाव एवं व्यवसाय आदि का निर्धारण होता है। भवन-नियोजन एवं निर्माण भी इसी तरह किया जाना चाहिए कि जातक के नक्षत्र के अनुसार शुभ एवं अनुकूल हो। इसलिए भवन का निर्माण करते समय भूमि का चयन, भूमि-पूजन, मुख्य द्वार का निर्धारण, रंगों का नियोजन, गृह प्रवेश आदि कार्य नक्षत्र के अनुसार संपन्न किए जाते हैं।
महादशा
जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में होगा, उस नक्षत्र स्वामी की महादशा जन्म के समय होती है। महादशा काल में जातक की जिस ग्रह की महादशा चलती है, उसे जन्म समय की महादशा माना गया है, जिसके अनुसार जातक की उम्र 120 वर्ष मानी गई है। नक्षत्र स्वामी की ग्रह जन्म-पत्रिका की स्थिति के अनुसार उसके शुभ एवं अशुभ परिणाम प्राप्त होते हैं।
जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में होगा, उस नक्षत्र स्वामी की महादशा जन्म के समय होती है। महादशा काल में जातक की जिस ग्रह की महादशा चलती है, उसे जन्म समय की महादशा माना गया है, जिसके अनुसार जातक की उम्र 120 वर्ष मानी गई है। नक्षत्र स्वामी की ग्रह जन्म-पत्रिका की स्थिति के अनुसार उसके शुभ एवं अशुभ परिणाम प्राप्त होते हैं।
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