जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।
सत्यनारायण स्वामी, जन-पातक-हरणा ॥ जय लक्ष्मी... ॥
नारद करत नीराजन, घंटा वन बाजे ॥ जय लक्ष्मी... ॥
बूढ़ो ब्राह्मण बनकर, कंचन महल कियो ॥ जय लक्ष्मी... ॥
चंद्रचूड़ इक राजा, तिनकी विपति हरी ॥ जय लक्ष्मी... ॥
सो फल भोग्यो प्रभुजी, फिर स्तुति किन्हीं ॥ जय लक्ष्मी... ॥
श्रद्धा धारण किन्ही, तिनको काज सरो ॥ जय लक्ष्मी... ॥
मनवांछित फल दीन्हो, दीन दयालु हरि ॥ जय लक्ष्मी... ॥
धूप-दीप-तुलसी से, राजी सत्यदेवा ॥ जय लक्ष्मी... ॥
ऋषि-सिद्ध सुख-संपत्ति सहज रूप पावे ॥ जय लक्ष्मी... ॥
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Monday, January 17, 2011
|| Shri SatyaNarayanJi Ki Aarti ||
|| श्री सत्यनारायणजी की आरती ||
रत्न जड़ित सिंहासन, अद्भुत छवि राजे ।
प्रकट भए कलिकारन, द्विज को दरस दियो ।
दुर्बल भील कठारो, जिन पर कृपा करी ।
वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दीन्ही ।
भाव-भक्ति के कारण, छिन-छिन रूप धर्यो ।
ग्वाल-बाल संग राजा, बन में भक्ति करी ।
चढ़त प्रसाद सवायो, कदली फल मेवा ।
सत्यनारायणजी की आरती जो कोई नर गावे ।
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